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10:11, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
'''अेक'''
घणकरा‘क पढ्या-लिख्या
फिरै बेरुजगार
पण फर ई
घणां ई पढै
रुजगार सारू ।
'''दो'''
पैलां
पैलां खड़्या होंवता
बडा-बडेरा
अब पैलां
खड़्या होवै
टाबर
जावण सारू
ट्यूशन
का कान्वेंट ।
'''तीन'''
चाल‘र
मिलण आयड़ो
मिनख मूंडो ताकतो रैवै
अर कानाबाती माखर आयड़ो
पैलां बात करज्यै ।
</poem>
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