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10:13, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
जबाड़ा निसरेड़ो
बीं रो चैरो
कोजो हो
पण बस मांय बैठ्यो
म्हैं
बीं कानी ई देखै हो
क्यूं कै बो
मेरै गाम रै अेक
सुरगवासी आदमी रै
चैरै स्यूं मिलै हो ।
</poem>
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