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10:21, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
टांग‘र
सइकल पर
लंबी सी धजा
टेक गबरू
चाल्यो है
सालासर धाम
फरूकती धजा
आवै बार-बार
आंख्यां आगै
सडक भरी बगै
साधनां स्यूं
सोचूं - आ अंध सरधा
ले न ल्यै कठैई
बीं री ज्यान !
</poem>
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