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10:32, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
बै म्हारै मांय ई
उठता-बैठता
जादा घरे ई रैंवता
कठै स्यूं ई नीं आंवतो
नूंतो
कीं उद्घाटन
का सभासंबोधन रो
पण
जद स्यूं चुणीज्या है
अटकण लागग्यो है
लोगां रो ब्या’ भी
बां बिना ।
</poem>
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