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10:38, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
रठ मांय
दिनूगै पैली बस मांय चढयो
तो कइयां
जुराब ठठा राखी ही
कई इंयां ई बैठया हा
म्हैं सोचै हो -
जाडै चामड़ै रा बूंट खरीदल्यूं
पण
सांमी बैठयो ’बो‘
चप्पल मांय ई हो ।
</poem>
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