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मकान / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
'''अेक'''

पुराणै मकान मांय
कीं घटा-बधी कराई
तो पछै
पैलड़ै री
भोत ओळ्यूं आई

'''दो'''

लोगां
मकान बणावण री
बधाई दी
म्हैं सोचै हो -
क्यारी बधाई
इतणा दिन
मकान जेब मांय हो
अब
बारै आयग्यो

'''तीन'''

कट-कट’र
पहाड़
खड़्या होग्या
मदानां मांय ।
</poem>
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