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10:50, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
आज
दफ्तर स्यूं घरां आय’र
म्हैं खुस हो
कै
आज तो नीं जावणो पड़सी
बाजार
स्यात घरां ई हुयग्यो हो
सब्जी रो जुगाड़
पण
जद थोड़ी ई ताळ मांय
पोती धांसी
तो म्हैं सोच्यो -
ई खातर तो
ल्याणो ई चाईजै च्यवनप्रास
अेक चीज सारू निकळयो तो
और-और चेतै आंवती गई
नतीजो-
थेलो भरीजग्यो अर
जेब रीतगी
कुड़तै-पजामै रो कपड़ो तो
छोड़णो पड़्यो मुला’र
बाणियै नै कैयो
काल खरीदस्यां
विच्यार बणा’र ।
</poem>
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