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ओ एक ही कली की / अज्ञेय

3 bytes removed, 04:13, 17 मार्च 2008
मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
::दूसरी, चम्पई पंखुड़ी !
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
हमारे बीच में से होती
उड़ जायेगी !
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