गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ओ एक ही कली की / अज्ञेय
3 bytes removed
,
04:13, 17 मार्च 2008
मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
:
:दूसरी, चम्पई पंखुड़ी !
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
हमारे बीच में से होती
उड़ जायेगी !
Anonymous user
Sumitkumar kataria