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'''बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो,''' '''दीनबंन्धु दया कीन्ही निरूपाधि न्यारिये।''''''रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल,''' '''आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥ ''' '''बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो,''' '''माथे पगु बलीको, निहारि सो निवारिये।''''''केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर,''' '''बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥ 21॥मारिये॥21॥'''
'''भावार्थ ''' - हे दनीबन्धु ! बलि जाता हूँ बालकको देखकर आपने लड़कपनसे ही अपनाया और मायारहित अनोखी दया की। सोचिये तो सही, तुलसी आपका दास है, इसको आपका ही भरोसा, आपका ही बल और आपकी ही आशा है। अत्य,न्ती भयानक कलिकालने किसको बैचेन नही किया ? इस बलवान का पैर मेरे मस्तकपर भी देखकर उसको हटाइये। हे केशरीकिशोर बरजोर वीर ! आप रणमें कोलाहल उत्पन्न करनेवाले हैं, राहु की माता सिंहिका के समान बाहु की पीड़ा को पछाड़कर मार डालिये॥ 21॥ '''उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये।रामके गुलामनिको कामतरू रामदूत, मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥ साहेब समर्थ तोसों तुलसींके माथेपर, खोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर,मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥ 22॥''' डालिये॥21॥
भावार्थ - हे केसरीकुमार ! आप उजड़े हुए (सुग्रीव-विभीषण) को बसानेवाले और बसे हुए (रावणादि) को उजाड़नेवाले हैं'''उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, अपने उस ''' '''केसरीकुमार बल का स्मरण कीजिऐ। हे आपनो सँभारिये।''''''रामके गुलामनिको कामतरू रामदूत ! रामचन्द्र जी के सेवकोंके लिये आप कल्पवृक्ष है और मुझ-सरीखे ,''''''मोसे दीन-दुर्बलों-को आपका ही सहारा है । हे वीर ! तुलसीके माथेपर आपके समान दूबरेको तकिया तिहारिये॥''' '''साहेब समर्थ स्वामी विद्यमान रहते हुए भी वह बाँधकर मारा जाता है। बलि जाता हूँ मैं भुजा विशाल तोसों तुलसींके माथेपर,''''''खोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।''''''पोखरी के समान है और यह पीड़ा उसमें जलचरके सद्दश हैबिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर, जो ''''''मकरी- के समान इस जलचरीको पकड़कर इसका मुख फाड़ डालिये॥ 22॥ ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥22॥'''
'''राम भावार्थ''' - हे केसरीकुमार ! आप उजड़े हुए (सुग्रीव-विभीषण) को बसानेवाले और बसे हुए (रावणादि) को सनेहउजाड़नेवाले हैं, राम साहस लखन सिय राम की भगती, सोच संकट निवारिये।मुदअपने उस बल का स्मरण कीजिऐ। हे रामदूत ! रामचन्द्र जी के सेवकोंके लिये आप कल्पवृक्ष है और मुझ-मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे जीवसरीखे दीन-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥ कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेमदुर्बलों-पब्बयतें सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये।महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लातघात को आपका हीसहारा है । हे वीर ! तुलसीके माथेपर आपके समान समर्थ स्वामी विद्यमान रहते हुए भी वह बाँधकर मारा जाता है। बलि जाता हूँ मैं भुजा विशाल पोखरी के समान है और यह पीड़ा उसमें जलचरके सद्दश है, मरोरि मारिये॥ 23॥''' जो मकरी- के समान इस जलचरीको पकड़कर इसका मुख फाड़ डालिये॥ 22॥
भवार्थ - मुझमें रामचन्द्रजीके प्रति स्नेह, रामचन्द्रजीकी भक्ति'''राम को सनेह, राम-लक्ष्मण औ जानकीजीकी कृपासे साहस (दृढ़ता-पूर्वक कठिनाइयोंका सामना करनेकी हिम्मत) हैलखन सिय''''''राम की भगती, अतः मेरे शोक-सोच संकट को दूर कीजिये। आनन्द रूपी बन्दर रोगरूपी अपार समुद्र-को देखकर मनमें हार गये हैं, जीवरूपी जाम्बवन्तको आपका बडा भरोसा है। हे कृपालु ! तुलसी के सुन्दर प्रेमरूपी पर्वतसे कूदिये श्रेष्ठ स्थान (हदय) रूपी सुबेलपर्वतपर बैठे हुए जीवरूपी जाम्बवन्तजी सोचते (प्रतीक्षा करते) हैं। हे महाबली बाँके योद्वा ! मेरे बाहुकी पीड़ारूपिणी लंकिनीको लातकी चोट से क्यों नहीं मरोड़कर मर डालते?॥ 23॥ निवारिये।''''''मुद-मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे'''लोक परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।कर्म, काल, लोकपाल, अग जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥ आस दस रावरो, निवास '''जीव-जामवंतको भरोसो तेरो तासु उर,भारिये॥''' '''कूदिये कृपाल तुलसी सो देव दुखी देखिअत भारिये।बात तरूमूल बाँहुसूल कपिकच्छुसुप्रेम-बेलिपब्बयतें''''''सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये।''''''महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न,''' उपजी सकेलि कपिकेलि '''लंकिनी ज्यों लातघात ही उखारिये॥ 24॥, मरोरि मारिये॥23॥'''
भावार्थ '''भवार्थ''' - लोकमुझमें रामचन्द्रजीके प्रति स्नेह, परलोक और तीनों लोकोमें चारों नेत्रोंसे देखता हूँरामचन्द्रजीकी भक्ति, आपके समान योग्य कोई नहीं दिखाई देता। हे नाथ ! कर्म, काल, लोकपाल तथा सम्पूर्ण स्थावरराम-लक्ष्मण औ जानकीजीकी कृपासे साहस (दृढ़ता-जड़्गम जीवसमूह आपके ही हाथमें पूर्वक कठिनाइयोंका सामना करनेकी हिम्मत) है, अपनी महिमाको विचारिये। अतः मेरे शोक-संकट को दूर कीजिये। आनन्द रूपी बन्दर रोगरूपी अपार समुद्र-को देखकर मनमें हार गये हैं, जीवरूपी जाम्बवन्तको आपका बडा भरोसा है। हे देव कृपालु ! तुलसी आपका निजी सेवक है, उसके हृदयमें आपका निवास है और वह भारी दुखी दिखायी देता है। वातव्याधिजनित के सुन्दर प्रेमरूपी पर्वतसे कूदिये श्रेष्ठ स्थान (हदय) रूपी सुबेलपर्वतपर बैठे हुए जीवरूपी जाम्बवन्तजी सोचते (प्रतीक्षा करते) हैं। हे महाबली बाँके योद्वा ! मेरे बाहुकी पीड़ा केवाँचकी लताके समान है, उसकी उत्पहन्नद हुई जड़को बटोर कर बानरी खेलसे उखाड़ डालिये॥ 24॥ पीड़ारूपिणी लंकिनीको लातकी चोट से क्यों नहीं मरोड़कर मर डालते?॥23॥
'''करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसेलोक परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत,''' बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।'''तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।'''बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि'''कर्म,काल, लोकपाल, अग जग जीवजाल,''' बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥ '''नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥''' आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख'''आस दस रावरो,निवास तेरो तासु उर,''' पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।'''तुलसी सो देव दुखी देखिअत भारिये।'''पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्हा तुलसीकी'''बात तरूमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि,''' बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥ 25॥'''उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये॥24॥'''
'''भावार्थ ''' - लोक, परलोक और तीनों लोकोमें चारों नेत्रोंसे देखता हूँ, आपके समान योग्य कोई नहीं दिखाई देता। हे नाथ ! कर्म, काल, लोकपाल तथा सम्पूर्ण स्थावर-जड़्गम जीवसमूह आपके ही हाथमें है, अपनी महिमाको विचारिये। हे देव ! तुलसी आपका निजी सेवक है, उसके हृदयमें आपका निवास है और वह भारी दुखी दिखायी देता है। वातव्याधिजनित बाहुकी पीड़ा केवाँचकी लताके समान है, उसकी उत्पहन्नद हुई जड़को बटोर कर बानरी खेलसे उखाड़ डालिये॥ 24॥ '''करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे,''''''बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।''''''बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि,''''''बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥''' '''आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख,''''''पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।''''''पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्हा तुलसीकी,''''''बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥ 25॥''' '''भावार्थ''' - कर्मरूपी भंयकर कंसराजाके भरोसे बकासुरकी बहिन पूतना राक्षसी क्या किसीसे डरेगी? बालकों को मारने में बड़ी भयावनी जिसकी लीला कही नहीं जाती है, वह अपने बाहुबलसे छोटे छबिमान् शिशुओंको छलेगी। आप ही विचारकर देखिये, वह सुन्दर रूप बनाकर आयी है, यदि आप सरीखे गुणीके पाले पड़ेगी तो सभीका पाप दूर हो जायगा। हे महाबली कपिराज ! तुलसीकी बहुकी पीड़ा पूतना पीसाचिनीके समान है और आप बालकृष्णरूप है, यह आपके ही मारनेसे मरेगी॥ 25॥
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