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सदस्य:Sumitkumar kataria

1,850 bytes added, 08:31, 19 जनवरी 2008
की 'कितनी नावों में कितनी बार' टाइप कर रहा हूँ, उसे लायब्रेरी को लौटाने की जल्दी है। बाद में मुक्तिबोध
की किताब पूरी करूँगा।
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अरे सुमित जी ! भैया, आप इतने अच्छे ढंग से चांद का मुँह टेढ़ा कर रहे हैं कि कुछ वर्षों बाद लोग आप को 'आप' ही नहीं 'बाप' कहना शुरू कर देंगे । इस उम्र में यह हाल है तो आप आगे क्या करेंगे ?
ख़ैर, आपकी बात का मान रखते हुए आगे 'तुम' ही कहूंगा ।
भैया मेरे, शाबास । बहुत अच्छा काम कर रहे हो । मैं तुम्हारे साथ हूँ । कविता में रुचि लेते हो, कविता पढ़ते हो तो कविता लिखते भी होंगे ? हिन्दी भाषा की और हिन्दी साहित्य की समझ इसी उम्र में विकसित होकर मज़बूत बनेगी । इसलिए ख़ूब ज़्यादा से ज़्यादा साहित्य पढ़ने की कोशिश करना ।
मैं अपना ई-मेल का पता लिख रहा हूँ, कभी भी कोई बात पूछनी हो या कुछ कहना हो तो मुझे लिख सकते हो । तुम जैसे नौजवान हैं तो भारत का भविष्य और हिन्दी का भविष्य उज्जवल है ।
अनिल जनविजय, aniljanvijay@gmail.com
या अभी लिखना शुरू नहीं किया है ?
 
(उम्मीद करता हूँ, बल्कि मेरा इस तआरुफ़ को लिखने का इरादा भी यही है, कि अब दूसरे सदस्य मेरे लिए
'जी' या 'आप' शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे।)
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