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10:45, 10 जून 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=संत जूड़ीराम
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रघुवर चरित अमित सुक दायक सोई मेरे मन भाया है।
बहुतक जतन करे ई तन में विन सतसंग न पाया है।
सब्द सनेही सतगुरु मेरा धुन पर चित्त चड़ाया है।
सेस महेश गनेश जपत सोई नर-नारन में छाया है।
वेद पुरान भागवत गीता विमल-विमल जश गाया है।
सब्द सांक परतीत मान मन दृष्ट परे सो माया है।
ग्यान द्रष्ट आ द्रिष्ट अगोचर पूरन ब्रह्म कहाया है।
निरभें नाम जपो रघुवर को दुबदा दूर भगाया है।
जूड़ीराम आनन्द मगन उर मिटत दुख सुख छाया है।
</poem>