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रहिमन थोरे दिनन कोनैन सलोने अधर मधु, कौन करे मुंह स्याह। कहि रहीम घटि कौन।नहीं छनन को परतियामीठो भावै लोन पर, नहीं करन को ब्याह॥201॥अरु मीठे पर लौन॥121॥
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच। पन्नग बेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान।सील ढील जब देखिएहिम रहीम बेली दही, तुरन्त कीजिए कूच॥202॥सत जोजन दहियान॥122॥
रहिमन पैंडा प्रेम कोपरि रहिबो मरिबो भलो, निपट सिलसिली गैल। सहिबो कठिन कलेस।बिछलत पांव पिपीलिकाबामन है बलि को छल्यो, लोग लदावत बैल॥203॥भलो दियो उपदेस॥123॥
रहिमन ब्याह बियाधि हैपसरि पत्र झँपहि पितहिं, सकहु तो जाहु बचाय। सकुचि देत ससि सीत।पायन बेड़ी पड़त हैकहु रहीम कुल कमल के, ढोल बजाय बजाय॥204॥को बैरी को मीत॥124॥
रहिमन प्रिति सराहिएपात पात को सींचिबो, मिले होत रंग दून। बरी बरी को लौन।ज्यों जरदी हरदी तजैरहिमन ऐसी बुद्धि को, तजै सफेदी चून॥205॥कहो बरैगो कौन॥125॥
रहिमन तब लगि ठहरिएपावस देखि रहीम मन, दान मान, सम्मान। कोइल साधे मौन।घटत मान देखिए जबहिअब दादुर बक्ता भए, तुरतहिं करिय पयान॥206॥हमको पूछत कौन॥126॥
राम नाम जान्या नहींपिय बियोग तें दुसह दुख, जान्या सदा उपाधि। सूने दुख ते अंत।कहि रहीम तिहि आपनोहोत अंत ते फिर मिलन, जनम गंवायो बादि॥207॥तोरि सिधाए कंत॥127॥
रहिमन जगत बड़ाई कीपुरुष पूजें देवरा, कूकुर की पहिचानि। तिय पूजें रघुनाथ।प्रीति कैर मुख चाटईकहँ रहीम दोउन बनै, बैर करे नत हानि॥208॥पॅंड़ो बैल को साथ॥128॥
सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय। प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छवि कहाँ समाय।रहिमन सेल्ह जोई सहैभरी सराय रहीम लखि, सो जागीरें खाय॥209॥पथिक आप फिर जाय॥129॥
रहिमन करि सम बल नहींप्रेम पंथ ऐसो कठिन, मानत प्रभु की थाक। सब कोउ निबहत नाहिं।दांत दिखावत दीन हैरहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलत घिसावत नाक॥210॥चलिबो पाठक माहिं॥130॥
रहिमन छोटे नरन सोंफरजी सह न ह्य सकै, होत बड़ों नहिं काम। गति टेढ़ी तासीर।मढ़ो दमामो ना बनेरहिमन सीधे चालसों, सौ चूहे के चाम॥211॥प्यादो होत वजीर॥131॥
रहिमन प्रीत न कीजिएबड़ माया को दोष यह, जस खीरा ने कीन। जो कबहूँ घटि जाय।ऊपर से तो दिल मिलारहीम मरिबो भलो, भीतर फांके तीन॥212॥दुख सहि जिय बलाय॥132॥
रहिमन धोखे भाव सेबड़े दीन को दुख सुनो, मुख से निकसे राम। लेत दया उर आनि।पावत मूरन परम गतिहरि हाथी सो कब हुतो, कामादिक कौ धाम॥213॥कहु रहीम पहिचानि॥133॥
रहिमन मनहि लगई कैबड़े पेट के भरन को, देखि लेहु किन कोय। है रहीम दुख बाढ़ि।नर को बस करिबो कहायातें हाथी हहरि कै, नारायन बस होय॥214॥दयो दाँत द्वै काढ़ि॥134॥
रहिमन असमय के परेबड़े बड़ाई नहिं तजैं, हित अनहित है जाय। लघु रहीम इतराइ।बधिक बधै भृग बान सोंराइ करौंदा होत है, रुधिरै देत बताय॥215॥कटहर होत न राइ॥135॥
लोहे की न लोहार कीबड़े बड़ाई ना करैं, रहिमन कही विचार। बड़ो न बोलैं बोल।जो हानि मारै सीस मेंरहिमन हीरा कब कहै, ताही की तलवार॥216॥लाख टका मेरो मोल॥1361।
रहिमन जिह्वा बावरीबढ़त रहीम धनाढ्य धन, कहिगै सरग पाताल। धनौ धनी को जाइ।आपु तो कहि भीतर रहीघटै बढ़ै बाको कहा, जूती खात कपाल॥217॥भीख माँगि जो खाइ॥137॥
रहिमन निज मन की विथाबसि कुसंग चाहत कुसल, मन ही राखो गोय। यह रहीम जिय सोस।सुनि अठिलै है लोग सबमहिमा घटी समुद्र की, बांटि न लैहे कोय॥218॥रावन बस्यो परोस॥138॥
रहिमन जाके बाप कोबाँकी चितवन चित चढ़ी, पानी पिअत न कोय। सूधी तौ कछु धीम।ताकी गैर अकास लौगाँसी ते बढ़ि होत दुख, क्यों काढ़ि न कालिमा होय॥219॥कढ़त रहीम॥139॥
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।रहिमन उजली प्रकृति फाटे दूध को, नहीं नीच को संग। करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥220॥मथे न माखन होय॥140॥
रहिमन कठिन चितान तेबिपति भए धन ना रहे, चिंता को चित चेत। रहे जो लाख करोर।चिता दहति निर्जीव कोनभ तारे छिपि जात हैं, चिंता जीव समेत॥221॥ज्यों रहीम भए भोर॥141॥
रहिमन विद्या बुद्धि नहींभजौं तो काको मैं भजौं, नहीं धरम जस दान। तजौं तो काको आन।भू पर जनम वृथा धरैभजन तजन ते बिलग हैं, पसु बिन पूंछ विषान॥222॥तेहि रहीम तू जान॥142॥
रहिमन चुप ह्वै बैठिएभलो भयो घर ते छुट्यो, देखि दिनन को फेर। हँस्यो सीस परिखेत।जब नीकै दिन आइहैंकाके काके नवत हम, बनत न लगिहैं बेर॥223॥अपन पेट के हेत॥143॥
रहिमन खोजे ऊख भार झोंकि के भार में, जहां रसनि की खानि। रहिमन उतरे पार।जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति पै बूड़े मझधार में हानि॥224॥, जिनके सिर पर भार॥144॥
रहिमन को कोउ का करैभावी काहू ना दही, ज्वारी चोर लबार। भावी दह भगवान।जो पत राखन हारभावी ऐसी प्रबल है, माखन चाखन हार॥225॥कहि रहीम यह जान॥145॥
रहिमन वे नर मर चुकेभावी या उनमान को, जो कहुं मांगन जांहि। पांडव बनहि रहीम।उनते पहिले वे मुएजदपि गौरि सुनि बाँझ है, जिन मुख निकसत नाहिं॥226॥बरु है संभु अजीम॥146॥
रहिमन कबहुं बड़ेन केभीत गिरी पाखान की, नाहिं गरब को लेस। अररानी वहि ठाम।भार धरे संसार अब रहीम धोखो यहै, को, तऊ कहावत सेस॥227॥लागै केहि काम॥147॥
रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट भूप गनत लघु गुनिन को हेत। , गुनी गनत लघु भूप।हम तन ढारत ढेकुलीरहिमन गिर तें भूमि लौं, सींचत अपनो खेत॥228॥लखों तो एकै रूप॥148॥
रहिमन रिस सहि तजत नहिंमथत मथत माखन रहै, बड़े प्रीति की पौरि। दही मही बिलगाय।मूकन भारत आवईरहिमन सोई मीत है, नींद बिचारी दौरि॥229॥भीर परे ठहराय॥149॥
रहिमन ओछे नरन सोंमनिसिज माली की उपज, बैर भलो न प्रीति। कहि रहीम नहिं जाय।काटे चाटे स्वान फल श्यामा केउर लगे, दुहूं भांति विपरीति॥230॥फूल श्याम उर आय॥150॥
रहिमन भेषज के किएमन से कहाँ रहिम प्रभु, काल जीति जो जात। दृग सो कहाँ दिवान।बड़े-बड़े समरथ भयेदेखि दृगन जो आदरै, तौ न कोउ मरि जात॥231॥मन तेहि हाथ बिकान॥151॥
रहिमन जग जीवन बड़ेमंदन के मरिहू गये, काहु औगुन गुन न देखे नैन। सिराहिं।जाय दसानन अछत हीज्यों रहीम बाँधहु बँधे, कपि लागे गथ लैन॥232॥मराह ह्वै अधिकाहिं॥1521।
रहिमन पानी राखिएमनि मनिक महँगे किये, बिनु पानी सब सून। ससतो तृन जल नाज।पानी भए न ऊबरैंयाही ते हम जानियत, मोती मानुष चून॥233॥राम गरीब निवाज॥153॥
रहिमन बहु भेषज करतमहि नभ सर पंजर कियो, ब्याधि न छांड़त साज। रहिमन बल अवसेष।खग मृग बसत अरोग बनसो अर्जुन बैराट घर, हरि अनाथ रहे नारि के नाथ॥234॥भेष॥154॥
रहिमन तीन प्रकार तेमाँगे घटत रहीम पद, हित अनहित पहिचानि। कितौ करौ बढ़ि काम।पर बस परे, परोस बसतीन पैग बसुधा करो, परे मामिला जानि॥235॥तऊ बावनै नाम॥155॥
पांच रूप पांडव भएमाँगे मुकरि न को गयो, रथ बाहक नलराज। केहि न त्यागियो साथ।दुरदिन परे रहीम कहिमाँगत आगे सुख लह्यो, बड़े किए घटि काज॥236॥ते रहीम रघुनाथ॥156॥
समय परे ओछे वचनमान सरोवर ही मिले, सबके सहै रहीम। हंसनि मुक्ता भोग।सभा दुसासन पट गहैसफरिन भरे रहीम सर, गदा लिए रहे भीम॥237॥बक-बालकनहिं जोग॥157॥
रहिमन जा डर निसि पैरमान सहित विष खाय के, ता दिन डर सब कोय। संभु भये जगदीस।पल पल करके लागतेबिना मान अमृत पिये, देखु कहां धौ होय॥238॥राहु कटायो सीस॥158॥
रहिमन रहिला की भलेमाह मास लहि टेसुआ, जो परसै चितलाय। मीन परे थल और।परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय॥239॥त्यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर॥159॥
रहिमन यह तन सूप हैमीन कटि जल धोइये, लीजै जगत पछोर। खाये अधिक पियास।हलुकन को उड़ि जान हैरहिमन प्रीति सराहिये, गुरुए राखि बटोर॥240॥मुयेउ मीन कै आस॥160॥
रहिमन गली है साकरीमुकता कर करपूर कर, दूजो ना ठहराहिं। चातक जीवन जोय।आपु अहै तो हरि नहिंएतो बड़ो रहीम जल, हरि तो आपुन नाहिं॥241॥ब्याल बदन विष होय॥161॥
स्वारथ रचत रहीम सबमुनि नारी पाषान ही, औगुनहूं जग मांहि। कपि पसु गुह मातंग।बड़े बड़े बैठे लखौतीनों तारे राम जू, पथ पथ कूबर छांहि॥242॥तीनों मेरे अंग॥162॥
संपति भरम गंवाइ कैमूढ़ मंडली में सुजन, हाथ रहत कछु नाहिं। ठहरत नहीं बिसेषि।ज्यों रहीम ससि रहत हैस्याम कचन में सेत ज्यों, दिवस अकासहुं मांहि॥243॥दूरि कीजिअत देखि॥163॥
सर सूखै पंछी उड़ैयह न रहीम सराहिये, औरे सरन समाहिं। देन लेन की प्रीति।दीन मीन बिन पंख केप्रानन बाजी राखिये, कहु रहीम कहं जाहिं॥244॥हारि होय कै जीति॥165॥
स्वासह तुरिय जो उच्चरैयह रहीम निज संग लै, तिय है निश्चल चित्त। जनमत जगत न कोय।पूत परा घर जानिएबैर, रहिमन तीन पवित्त॥245॥प्रीति, अभ्यास, जस, होत होत ही होय॥166॥
साधु सराहै साधुतायह रहीम मानै नहीं, जती जोखिता जान। दिल से नवा जो होय।रहिमन सांचे सूर कोचीता, बैरी करे बखान॥246॥चोर, कमान के, नये ते अवगुन होय॥167॥
संतत संपति जानि कैयाते जान्यो मन भयो, सबको सब कुछ देत। जरि बरि भस्म बनाय।दीन बन्धु बिन दीन कीरहिमन जाहि लगाइये, को रहीम सुधि लेत॥247॥सो रूखो ह्वै जाय॥168॥
ससि की शीतल चांदनीये रहीम फीके दुवौ, सुन्दर सबहिं सुहाय। जानि महा संतापु।लगे चोर चित में लटीज्यों तिय कुच आपुन गहे, घटि रहीम मन आय॥248॥आप बड़ाई आपु॥169॥
सीत हरत तम हरत नितये रहीम दर-दर फिरै, भुवन भरत नहि चूक। माँगि मधुकरी खाहिं।रहिमन तेहि रवि को कहायारो यारी छाँडि देउ, जो घटि लखै उलूक॥249॥वे रहीम अब नाहिं॥170॥
ससि सुकेस साहस सलिलयों रहीम गति बड़ेन की, मान सनेह रहीम। ज्यों तुरंग व्यवहार।बढ़त बड़त बढ़ि जात हैदाग दिवावत आपु तन, घटत घटत घटि सीम॥250॥सही होत असवार॥171॥
यह न यों रहीम सराहिएतन हाट में, लेन देन की प्रीति। मनुआ गयो बिकाय।प्रानन बाजी राखिएज्यों जल में छाया परे, हार होय कै जीति॥251॥काया भीतर नॉंय॥172॥
ये यों रहीम दर दर फिरहिंसुख दुख सहत, मांगि मधुकरी खाहिं। बड़े लोग सह साँति।यारो यारी छोड़िएउवत चंद जेहि भाँति सो, वे रहीम अब नाहिं॥252॥अथवत ताही भाँति॥173॥
यों रहीम तन हाट रन, बन, ब्याधि, विपत्ति में, मनुआ गयो बिकाय। रहिमन मरै न रोय।ज्यों जल में छाया परेजो रच्छक जननी जठर, काया भीतर नाय॥253॥सो हरि गये कि सोय॥174॥
रजपूती चांवर भरीरहिमन अती न कीजिये, जो कदाच घटि जाय। गहि रहिये निज कानि।कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय॥254॥सैजन अति फूले तऊ डार पात की हानि॥175॥
यों रहीम सुख होत हैरहिमन अपने गोत को, बढ़त देखि निज गोत। सबै चहत उत्साह।ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन मृ्ग उछरत आकाश को सुख होत॥255॥, भूमी खनत बराह॥176॥
हित रहीम इतनैं करैंरहिमन अपने पेट सौ, जाकी जिती बिसात। बहुत कह्यो समुझाय।नहिं यह रहै न व जो तू अन खाये रहे, रहै कहन तासों को बात॥256॥अनखाय॥177॥
सबको सब कोऊ करैंरहिमन अब वे बिरछ कहँ, कै सलाम कै राम। जिनकी छॉह गंभीर।हित रहीम तब जानिएबागन बिच बिच देखिअत, जब कछु अटकै काम॥257॥सेंहुड़, कुंज, करीर॥178॥
रौल बिगाड़े राज नैंरहिमन असमय के परे, मौल बिगाड़े माल। हित अनहित ह्वै जाय।सनै सनै सरदार कीबधिक बधै मृग बानसों, चुगल बिगाड़े चाल॥258॥रुधिरे देत बताय॥179॥
रहिमन कहत स्वपेट सोंअँसुआ नैन ढरि, क्यों न भयो तू पीठ। रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ॥259॥ होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय। तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥260॥ वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥261॥ होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर। बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर॥262॥ हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर। जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर॥263॥ अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय। ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥264॥बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान। धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान॥265॥ एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड। कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥266॥ जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय। बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय॥267॥ चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि। सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥268॥ चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह। जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥269॥ जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय। ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥270॥ खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति। आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति॥271॥ कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम। काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥272॥ जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट। भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥273॥ कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन। जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन॥274॥ पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त। होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त॥275॥ आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई। लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई॥276॥ नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति। प्रगट करेइ।जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति॥277॥ उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय। परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय॥278॥ परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान। जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान॥279॥ रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान। मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान॥280॥ परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग। क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥281॥ कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल। कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥282॥ जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई। पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥283॥ कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन। छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥284॥ बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई। प्रेमाक्षर लिखि नैन निकारो गेह ते, पिये बांचन को देई॥285॥ पलक म टारै बदन ते, पलक कस न मारै मित्र। नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र॥286॥सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान। छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान॥287॥ कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि। नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि॥288॥ करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप। सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप॥289॥ करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ। पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ॥290॥ सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार। प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार॥291॥ जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं। डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि॥292॥ भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह। जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥293॥ भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर। धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥294॥ पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट। बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥295॥ सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट। लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥296॥ राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप। कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप॥297॥ हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत। सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥298॥ हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास। धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥299॥ गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल। पहिले आपुन मोल भेद कहि, कहत दही को मोल॥300॥देइ॥180॥
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