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[[Category:छप्पय]]
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चकित भँवरि रहि गयो, गम नहिं करत कमलवन.
अहि फन मनि नहिं लेत, तेज नहिं बहत पवन वन.
खानान खान बैरम सुवन जबहिं क्रोध करि तंग कस्यो.
कहते हैं इस छप्पय पर 'रहीम खानखाना' ने 'कहा जाता है कि यह छप्पय [[रहीम|अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना]] को इतना पसंद आया कि उन्होनें केवल इस एक छप्पय के लिए [[गँग' |कविवर गँग]] को छत्तीस लाख रूपये दे डाले.रूपए का ईनाम दिया था।'''</poem>