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तुम शुद्ध बुद्ध की परम्परा में आएआयेमानव थे ऐसे, देख कि देव लजाएलजाये
भारत के ही क्यों, अखिल लोक के भ्राता
तुम आए आये बन दलितों के भाग्य-विधाता !
तुम समता का संदेश सुनाने आएआयेभूले-भटकों को मार्ग दिखाने आएआयेपशु-बल की बर्बरता की दुर्दम आँधीआंधीपथ से न तुम्हें निज डिगा सकी हे गाँधी !
जीवन का किसने गीत अनूठा गाया
इस मर्त्यलोक में किसने अमृत बहाया
गूँजती आज भी किसकी प्रोज्वल वाणी
कविता-सी सुन्दर सरल और कल्याणी !
हे स्थितप्रज्ञ, हे व्रती, तपस्वी त्यागी
हे अनासक्त, हे भक्त, विरक्त विरागी
हे सत्य-अहिंसा-साधक, हे संन्यासीसन्यासीहे राम-नाम आराधक दृढ़ विश्वासी !
हे धीर-वीर-गम्भीरगंभीर, महामानव हेहे प्रियदर्शन, जीवन दर्शन, अभिनव हेहैघन अंधकार में बन प्रकाश तुम आएआयेकवि कौन, तुम्हारे जो समग्र गुण गाए गाये? '''-पूर्णा'''
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