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हर तरफ सहजता थी कि जिंदगी बेहतर होसड़क पर आओझण्डे फहराओऔर क्रान्तिकारी गीता गाओफूलों को संभालते हुएऔर सड़क साफ दिखाई दीआगे ‘कम्यून’ तक।वह कैसे समझ सकता थाउच्च सैनिक कमान के साथजीवन के निर्णायक दौर कोयह हमारे लिए बहुत आसान न थाकि कैसे समझा जाये जन-जीवन की जटिलताओं को।एक सर्द सुबह भीगे हुए कदमों सेउसने अपने सामान को बोरे में भरा, बांधाऔर घोड़े पर चढ़ते हुए स्कूली लड़की से कहाμ‘अच्छाμफिर मिलेंगे’और ओझल हो गयारकाबों के साथ उछलता हुआउधर जहाँ से हवा आई थीविस्फोटों से गंधाती हुईऔर उसका घोड़ा चौकड़ियां भरता हुआ उसेपूर्व की ओर ले गयाबेरबरी की अयालों को फटकारता हुआ।इस तरह वर्ष बीतते गयेएक के बाद दूसराछोटे-से कस्बे में बढ़ता रहा मैंसुनसान घरोंहरे-भरे मैदानोंऔर जंगलों के लिए मोह समेटता हुआबढ़ता रहा मैंलुकते-छिपते नहीं पकड़ा गयाचौकीदार सेहम भूसे के ढेर से अनाज को बाहर निकालते थेबन्दूकों के किये हुए छेदों से।वह लड़ाई का समय थाहिटलर मास्को से दूर नहीं थाऔर हम बच्चे थेबहुत कुछ को सहज ढंग से लेते हुएकक्षा की धमकियों को झेलते हुयेऔर भूलते हुएहम स्कूल के खेल के मैदान से दुबक कर फूटते थेऔर दौड़े खेतों से नदी तकगुल्लकें तोड़ कर निकलते थेहरी सड़कें देखने के लिएकांटों पर चारा फंसा करमछलियों का शिकार कियाअटकी हुई पतंगों को लपकते थेनंगे सिर घूमते हुए अपने आपजंगली मेथी को चूसते हुएमेरी चप्पलें घास के रंग में रंग जाया करती थींमैंने काली जमीन के विस्तारों को समझामधु-मक्खियों के पीले छतों कोहौले-हौले मंडराते उजले बादल बरसते थेविशाल क्षितिजों के पीछे दृश्यों को खोलते हुएचारों ओर से ढके मकानों कोघोड़ों की तरह हिनहिनाते बादलऔर थके हुए सोते थे हम सूखी हुई घास परवर्षा के लंबे अंधेरों में।चिन्ता थी मेरे लिए दुनिया में जिंदगीझंझटे झेलता हुआजीवन सुलझता रहा अपने आपबिना विशेष योगदान केसंशय नहीं था मुझेसंगत समाधानों के बारे मेंजो उत्तर में दिये जा सकते थे सवालों कोलेकिन महसूस किया मैंनेजवाब देते हुये कि ये सवाल मेरे लिये हैंइसलिए वहाँ जाऊँगा मैंजहाँ से आरंभ हुआ हूँ।आकस्मिक भाव था आत्मनिष्ठद्वन्द्व बन गयाजिसे मैंने शुरू किया इस यात्रा मेंअपनी मातृभूमि के जंगलों मेंलम्बी पगडंडियों-सड़कों के बीचमैंने आदिम सरलता को समझने कीजटिलता को लिया।दूल्हा और दुल्हन जैसी एकदेशीय संगतिइसलिए साथ था वहाँ युवापन और बचपनएक-दूसरे की आँखों में देखने की कोशिश करता हुआअसमानता में एक-दूसरे से बात की शुरूआत करनापहले बचपन ने कहाμहैलो कैसे हो?मैंने तुम्हें मुश्किल से पहिचानाइसमें तुम्हारा कसूर हैजब भी तुम्हारे बारे में सोचा मैंनेमैंने सोचा तुम अब बदल गए होंगे‘सच कहूँगा’ तुम मेरी चिन्ता होआज भी तुम मेरे ऋणी होइसलिए युवक ने बचपन से मदद चाहीबचपन मुस्काया ओर वचनबद्ध हो गयासहायता के लिए।सतर्क होकर घूमते हुएउन्होंने कहा नमस्तेयात्रियों और मकानों को देखते हुएमैं खुशी से कदम बढ़ाता रहा सहज-असहजज़ीमा जंकशन!वह महत्वपूर्ण कस्बावस्तु-स्थितियों पर काम किया मैंने समय से पहलेइन विकल्पों के साथ कियदि यहाँ कुछ भी बेहतर नहीं थातो इससे बुरा भी कुछ नहीं रहा होगा।अनाज के भण्डार कैसे छोटे हो गयेजैसे कि दवाइयों की दुकानजैसे पार्कजब मैंने इसे छोड़ा थातब से अबजैसा कि छोटा हो गया हो समूचा संसारऔर कठिन था शुरू में दूसरी चीजों के बीचगलियों को देखनाजो सभी छोटी नहीं हुई थींलेकिन मैं विशाल परिदृश्य में थाकस्बे में घिसटता हुआ।एक समय मैं यहाँ रहा एक अच्छे फ्लैट मेंमुझे तुरंत मिलता रहा जो मैंने चाहाचाय का कप और बिस्तरघूम सकता था अंधेरे में औरहालात सजग हो सकते थेमेरी लम्बी अनुपस्थिति में भीलेकिन अब मैं टकरा गया हूँ ढंग सेइस्तेमाल की हुई हर चीज सेऔर ग़ैर की तरह उन्होंने मेरी आँखों को पकड़ाऊँची मुण्डेरों की अश्लील इबारतों के साथपियक्कड़ और कहवाघर की धंसी हुई दीवारेंदुकानों की क्यू में झगड़ती हुई औरतेंहाँ, यदि यह कोई और स्थान होता...लेकिन यह जगह जहाँ मैं पैदा हुआजहाँ मैं घर आया शक्ति के लिएऔर साहस के लिएसच के लिए और सच के अच्छे परिणामों के लिये।वहाँ ‘नगर परिषद’ में एक अभिशप्त ड्राइवर थाकिसी के अट्टहास के नीचे लड़ते हुए दो मुर्गे थेऔर निठल्ला ऊंघता हुआ दर्शकों को हुजूमधूल में सुने हुए लम्बे कोरसपैबंद लगे भिखारियों की बैसाखियाँछड़ी से बिल्ली को टोहता हुआ बच्चाμउद्देश्य के लिए सबसे सरल रास्ते नहीं गया मैंलेकिन कुछ समय बादमुझे जल्दी रहीऔर यह जरूरी भी थाचेहरे की ताज़गी को बरक़रार रखने के लियेजैसे ही मैं घर के करीब पहुँचागेट के नजदीकलोहे का घुमावदार छल्ला।आकस्मिक खुशियाँ‘आ गया’, ‘जेन्का आओ! और कुछ खाओ’पहले जैसी शुभकामनायेंचुम्बन और उलाहने‘टेलीग्राम नहीं भेज सकते थे तुम हमारे लिये’जब हम हल्का खाना बनाते होतेबार-बार गिनते होते, ‘कितने साल हो गये इसे’जैसे कि मैंने सोचा था सारे अनिश्चय ओझल थेऔर चीजें शांत हो गई थी और चमकदारचिन्तित मौसी अलीसा आगे कहतीसख्ती से कि मुझे नहाना चाहियेजैसा वह जानती, जो तरीके उसे पसंद थेμउसने कहेपरातें और रसोई का कामकाजकमरे में पहले से बिछी हुई मेजऔर भूरे-नीले प्यार के रंग का सूट पहन करहिलती-डुलती हुई।मैं कुएँ से पानी लेने जा चुका होताएक सैनिक गीत गा कर कुएँ को गुंजाता हुआ।कुएँ ने मेरे बचपन की सुगंधों को सहेजाकिनारों से छलकती हुई बाल्टी ऊपर आईभीगी हुई जंजीर रोशनी में चमकीयों मैं मास्को से आया था, मैं जरूरी मेहमानछितरे-भीगे बालों और साफ कमीज पहना हुआउल्लसित संबंधों की भीड़ में बैठा हुआसवालों का केन्द्र, चश्मे हबड़-तबड़बहुत कमजोर हो गया मैं भीमहान साइबेरिया के खाने सेऔर अब ओझल हो गया उनकी सम्पन्नता के दृश्य में सेमौसी ने कहाμ‘एक खीरा और लोवे तुम्हें क्या खिलाते रहे, तब मास्को में!तुम कुछ भी नहीं खा रहे, बुरी बात हैलो, एक पूरी और लोमेरे मामा ने कहाμ‘मैं मास्को वोद्का की उम्मीद कररहा थाजिसे तुम भी लेते रहे हो, कुछ कोशिश करो,जाइये, जाइयेμयह तुम्हारे लिये अच्छा नहींइस उम्र में’μमैं उसी तरह कहता हूँतुम्हें पीना किसने सिखाया, देखो नीचे एक खाई है...
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