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दो पद / मानबहादुर सिंह

6 bytes removed, 19:22, 9 जुलाई 2015
सारी प्रगति यहीं आ उलझी, बुनती है केवल बरबादी ।
सीधा सहज काम जो क्षण का, बरसों फँसकर माथ धुन रहा
यह बाबू कुछ नहीं सुन रहा।।
</poem>
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