662 bytes added,
02:10, 3 अगस्त 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनश्याम चन्द्र गुप्त
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
घड़ी की सुईयां
घड़ी की सुईयां निर्विकार चलती हैं
न तुमसे कुछ प्रयोजन, न मुझसे
श्वासों का क्रम गिनती पूरी होने तक निर्बाध
याम पर याम, याम पर याम
महाकाल की ओर इंगित करती हैं सुईयां घड़ी की
</poem>