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|रचनाकार=संतलाल करुण
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हे परमेश्वर !
अपने समान तन-मन, बल-बुद्धि
श्रवण-कथन का माधुर्य
वेद-पुराण, गीता-गायत्री ।
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तुमने ही तो दिया
कर्मक्षेत्र अपनी तरह