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चराग़े-दिल / देवी नांगरानी
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13:45, 18 जून 2008
* [[कोई और था फिर भी / देवी नागरानी]]
* [[गर्दिशों ने बहुत सताया है / देवी नागरानी]]
दर्द बनकर समा गया दिल में
छीन ली मुझसे मौसम ने आज़ादियाँ
चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
सिसकियों में हों पल रहे जैसे
तुझको अपना खुदा बनाया है
Pratishtha
KKSahayogi,
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