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|रचनाकार=नारायणलाल परमार
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<poem>गिलहरी प्रसन्न है,
जामुन की डाल पर!

जो फल मीठा लगता,
बस उसको खाती है!
नीचे खरगोश के-
लिए कुछ गिराती है।

कभी-कभी नाचती,
पूँछ को सम्हालकर!
ध्यान नहीं देती है,
कौए की काँव पर,
करती गुस्सा, उसके
मतलबी स्वभाव पर।

सुआ मगन है उसकी-
मतवाली चाल पर!

नहीं पकड़ में आती,
बेहद यह चंचल है,
हरे-भरे पेड़ों पर
मचा रही हलचल है।

इसको रखना मुश्किल,
पिंजरे में पालकर!
</poem>
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