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18:37, 27 सितम्बर 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=निशेष ज़ार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>पापा जी की प्यारी ऐनक,
जरा हमें बतलाओ तो-
हमको तो गोदी में पापा
कभी-कभी बिठलाते हैं,
तुम्हें नाक पर चढ़ा हमेशा
पुस्तक में खो जाते हैं।
घर से बाहर भी जब जाते
साथ तुम्हें ले जाते हैं,
हम तुमको छूना चाहें तो
गुस्सा भी हो जाते हैं।
आखिर क्या है तुममें ऐसा,
हमको भी समझाओ तो!
</poem>