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मोबाइल जी/ नागेश पांडेय ‘संजय’

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<poem>मोबाइल जी,
सचमुच तुम हो
बड़े काम की चीज!
गेम, कैमरा, केलकुलेटर
एफ.एम.,इंटरनेट,
कंप्यूटर भी इसमें आया
फिर भी सस्ता रेट।
एक टिकट में कई तमाशे-
वाली तुम टाकीज।
यों थी दुनिया बहुत बड़ी
तुमने तुमने कर दी छोटी,
जाल हर कहीं फैला है
क्या खूब चली गोटी।
सबके प्यारे हुए अचानक
कैसे बोलो, प्लीज!
जहाँ कहीं भी जाता तुमको
हरदम रखता साथ,
चिट्ठी का क्या काम कि फौरन
हो जाती है बात।
लेकिन ‘बिजी’ बोलते हो जब
तो उठती है खीज!

-साभार: नंदन अप्रैल 2006, 30
</poem>
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