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रेडियो / विश्वदेव शर्मा

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<poem>जादू के डिब्बे-सा हमको लगा रेडियो भाई,
बटन दबाते ही जिसमें से गाने की धुन आई!

इसमें परियाँ कैद पड़ी हैं,
गुन-गुन, गुन-गुन गाती हैं!
बाजीगर भी बंद पड़े-
जिनकी आवाजे़ं आती हैं!

खबर सुनाता एक, दूसरे ने है बीन बजाई!
जादू के डिब्बे-सा हमको लगा रेडियो भाई!
</poem>
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