503 bytes added,
05:23, 28 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बालकवि बैरागी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>शाम ढले पंछी घर आते,
अपने बच्चों को समझाते।
अगर नापना हो आकाश,
पंखों पर करना विश्वास।
साथ न देंगे पंख पराए,
बच्चों को अब क्या समझाए?
</poem>