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18:39, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अरविंद कुमार
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<poem>हुआ मिठाई का सम्मेलन,
संचालक था काला जामुन।
सजी-धजी थी खूब इमरती,
हँस-हँस सबसे बातें करती।
मचा रहा था हल्ला-गुल्ला,
लुढ़क-लुढ़क करके रसगुल्ला!
बर्फी आई थी इतराती,
साथ जलेबी रस टपकाती।
बालूशाही सोच रही थी,
बैठी खुद को कोस रही थी।
‘होगी कोई जुगत भिड़ानी,
बनूँ मिठाई की मैं रानी।’
किन्तु वाह गाजर का हलवा,
हलवे का था ऐसा जलवा।
उसने अपना रंग जमाया,
सबसे पहला नंबर पाया!
-साभार: नंदन, दिसंबर, 1990, 30
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