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19:07, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अश्वघोष
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>अब तक हमने देखी बाढ़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
सुना वहाँ परियाँ रहती हैं,
कल-कल-कल नदियाँ बहती हैं।
झरने करते हैं खिलवाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
और सुना है लोग निराले,
घर में नहीं लगाते ताले।
हरदम रखते खुले किवाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
यह भी सुना बर्फ पड़ती है,
पेड़ों पर मोती जड़ती है।
सब करते हैं उसको लाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
जीव-जंतु हैं वहाँ अनोखे,
चीते, भालू, हरियल तोते।
करते रहते सिंह दहाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
</poem>