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21:30, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ
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<poem>सुनी सुनाई या मनमानी,
कहो कहानी, तुम्हें सुनानी,
जोर-जोर से कही कहानी।
‘हूँ हूँ’ होवे अहो कहानी,
चुप-चुप, चुप-चुप सुनो कहानी।
पोदा रानी, पोदा रानी,
चूल्हे की थी वह दौरानी।
एक रोज की तुम सुन पाओ,
कान इधर को अपना लाओ।
चूल्हे में जब आग जल रही
धधक-धधककर धूँ,
कान इधर को अपना लाओ
काना-बाती कूँ।
-साभार: बालसखा, अक्तूबर, 1946, 361
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