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23:07, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सरिता शर्मा
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>खिल-खिल हँसे चुलबुली गुड़िया,
गुड़िया है आफत की पुड़िया!
दिन भर नाचे, मुझे नचाए,
तुतलाए जब गाना गाए।
झालर वाला धानी लहँगा,
सिर पर ओढे़ लाल चुनरिया।
आँखों में चंचलता ऐसी,
हर पल नई शरारत जैसी।
बस्ता ले पढ़ने को बैठे,
चुपके से खा जाए खड़िया।
अम्माँ की ऐनक को पहने,
लेकर बेंत चले क्या कहने?
ऐसी नकल उतारे नटखट,
गुड़िया से बन जाए बुढ़िया।
</poem>