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23:59, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>आकर बैठी दरवाजे पर,
उछली, पहुँच गई छज्जे पर
वह नन्ही चिड़िया-सी धूप।
पल में आ जाती धरती पर,
पल में हो जाती छूमंतर
जादू की पुड़िया-सी धूप।
लुढ़क रही कमरे के अंदर,
बैठी मस्ती से बिस्तर पर
जापानी गुड़िया-सी धूप।
पके आम से गालों वाली,
और सुनहरे बालों वाली
लगती है बुढ़िया-सी धूप।
</poem>