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गौरैया का घर / सुरेश विमल

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<poem>कहाँ बनाए घर गौरैया?
बैठक में जोड़े जो तिनके
दादा जी ने डाँट लगाई,
भगा दिया अपने कमरे से
भैया को भी दया न आई।
घुसी रसोई घर में लेकिन
उड़ी धुएँ से डर गौरैया।
लिये चोंच में तिनका बैठी
आँगन की खूँटी पर आकर,
लगी माँगने दादी माँ से
जगह जरा-सी गाना गाकर।
देखे कोना-कोना घर का
घुमा-घुमाकर सिर गौरैया।
खुले पेड़ पर डर मौसम का
आँधी, ओले, लू का चक्कर,
रहे भला कैसे गौरैया
बाज, चील, कौओं से बचकर।
सो पाएगी कहाँ चैन से
डरी-डरी बाहर गौरैया।

-साभार: नंदन, अप्रेल, 1987, 30
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