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00:52, 30 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश विमल
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>गुलमोहर का पेड़ लगाया
है मैंने जो आँगन में!
नन्हा-सा लाए थे पापा
इसको मेरे जन्म-दिवस पर,
पाला-पोसा मैंने इसको
पानी-खाद दिया था जमकर।
अब मुझसे भी बड़ा हो गया
देखो यह आनन-फानन में!
बड़े मजे से अब मैं इसकी
शाखाओं पर चढ़ सकता हूँ,
घंटों-घंटों इसकी शीतल
छाया में मैं पढ़ सकता हूँ।
चाहूँ तो बाँहों में इसकी
झूला झूलूँ मैं सावन में!
</poem>