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|रचनाकार=निरंकार देव सेवक
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<poem>चंदा मामा दूर के!
साथ लिए आए तारे,
चमक रहे कितने सारे,
राजमहल में जैसे जगमग,
जलते दीप कपूर के!
चंदा मामा दूर के!

दूर-दूर बिखरे तारे,
लगते हैं कैसे प्यारे,
गिरकर फैल गए हों जैसे,
लड्डू मोतीचूर के!
चंदा मामा दूर के!

कुछ आपस में हिलें-मिलें,
एक साथ अनगिनत खिलें,
जैसे लटक रहे बेलों पर
गुच्छे हों अंगूर के!
चंदा मामा दूर के!

परवत पीछे से उठकर,
शाखों में छिपकर पल भर,
देख रहे हैं जाने किसको,
मेरे घर पर घूर के!
चंदा मामा दूर के!

वही कथा कह दे नानी,
जिसमं थे राजा-रानी,
रानी ने जब दावत की थी,
दही-बड़े थे बूर के!
चंदा मामा दूर के!
</poem>
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