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13:10, 3 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>पान वाले, पान वाले!
पान दे हमको बनाकर,
ओ अनोखी शान वाले!
गोलटा देशी न भाते,
बस बनारस का लगा दे।
खा सकें पत्ता, सपत्ता,
इसलिए छोटा उठा ले!
पान वाले, पान वाले!
देख चूना कम लगाना,
ढेर-सा कत्था चढ़ाना।
मुँह रचाना है हमें बस,
कहीं पड़ जाएँ न छाले!
पान वाले, पान वाले!
डालना मीठी सुपारी,
खुशबुओं वाली फुहारी।
और पीपरमेंट भी कुछ,
जो हमारा मन उछाले!
पान वाले, पान वाले!
सौंफ मिसरी खूब रखना,
पर न तंबाकू बुरकना।
एक भी पत्ती पड़ी तो
हम न जाएँगे सँभाले!
पान वाले, पान वाले!
-साभार: नंदन, जनवरी, 2006, 20
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