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रंग-रंग का खाना / कामिनी कौशल

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<poem>आज रात बिस्तर में लेटे
सोचा मैंने ध्यान लगाकर,
कितने रंग की चीजें खाईं
मैंने दिन भर मँगा-मँगाकर।
श्वेत रंग का दूध पिया था,
पीला मक्खन साथ लिया था।
फिर थे लाल संतरे खाए,
रंग-बिरंगे सेब चबाए।
आइसक्रीम गुलाबी चाटी,
भूरी चाकलेट भी काटी।
पेट भरा था हरी मटर से,
और लाल-लाल गाजर से।
मैंने इतना सब था खाया,
पेट अचानक फटने आया।
अगर कहीं सचमुच जाता फट,
इंद्रधनुष बाहर आता झट!
</poem>
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