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19:27, 3 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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|संग्रह=
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<poem>मेरे मन में आता है यह, मैं जल्दी पापा बन जाऊँ!
पापा बन कर जैसे चाहूँ, वैसे अपना समय बिताऊँ
बहुत सवेरे मुझे जगा कर,
पापा बहुत सताते हैं,
मुझसे कहते करो पढ़ाई,
लेकिन खुद सो जाते हैं।
मेरे मन में आता है यह, मैं भी यों ही मौज उड़ाऊँ!
पापा जी की गलती पर क्या,
कोई कुछ कह पाता है?
मुझसे गलती होती है तो,
मुझको पीटा जाता है।
मेरे मन में आता है यह, गलती हो पर मार न खाऊँ!
आफिस से घर आते पापा,
मम्मी चाय पिलाती हैं।
मैं विद्यालय से घर आता,
होमवर्क करवाती हैं।
मेरे मन में आता है यह, मैं भी चाय पिऊँ, सुस्ताऊँ!
</poem>