Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकृष्णचंद्र तिवारी 'राष्ट्रब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीकृष्णचंद्र तिवारी 'राष्ट्रबंधु'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>असली दाँत गिर गए कब के
नकली हैं मजबूत,
इनके बल पर मुस्काती है
क्या अच्छी करतूत।
बड़े बड़ों को आड़े लेती
सब छूते हैं पैर,
नाकों चने चबाने पड़ते
जो कि चाहते खैर।
उनका मुँह अब नहीं पोपला
सही सलामत आँत,
कभी नहीं खट्टे हो सकते
दादी जी के दाँत।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits