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मीठी अम्माँ! / देवेंद्रकुमार

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<poem>क्यों चुप बैठी मेरी अम्माँ!

मैंने बात तुम्हारी मानी,
छोड़ी देखो हर शैतानी,
कह दो अब नाराज नहीं हो,
गुस्सा छोड़ो मेरी अम्माँ!

सबको रसगुल्ले खिलवाओ,
मालपुए घर में बनवाओ,
जल्दी से हँसकर हाँ कह दो,
मेरी प्यारी मीठी अम्माँ!

तुम बैठो मैं काम करूँगा,
खाली मटके सभी भरूँगा,
बस तुमको यह कहना होगा,
तू मेरा मैं तेरी अम्माँ!
</poem>
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