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|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
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मन भावुक है मन चंचल है
मन ही शस्त्रागार हमारा
मन ही कड़वाहट का सागर
मन ही अमृत की धारा
ज़हर बुझे तीरों का तरकश
कन्धे पर लटका कर जैसे
अनजाने अनछुए पलों को
जीने का साहस पाता है

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