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06:07, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मंगरूराम मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बाबूराम खिलौने वाला,
नए खिलौने लाया लाला!
चाहे ले लो गुड़िया-गुड्डा,
चाहे ले लो बुढ़िया-बुड्ढा,
चाहे ले लो बंदर काला!
ले लो टाइप करती गुड़िया,
यह पूरी जादू की पुड़िया,
टाइप करती खूब फटाफट,
खतम करे सब काम चटापट,
करे नहीं कुछ गड़बड़ झाला!
ये गुब्बारे मित्र हमारे,
इनसे ब्रह्मा भी है हारे,
पल में जो चाहो बन जाते,
चोंच लगे, चिड़िया हो जाते,
बढ़ खोलें खुशियों का ताला!
चाहो तो यह फुग्गा ले लो,
मन चाहे तो सुग्गा ले लो,
चाहो मोटर गाड़ी ले लो,
तेज दौड़ने वाली ले लो,
हार्न लगा है पों-पों वाला।
</poem>