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06:08, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मंगरूराम मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>जहाँ रोज बाँधा जाता था
चाचा जी का घोड़ा,
वहीं हमारे मामा जी का
छूट गया था कोड़ा!
मामा ने कोड़ा लेने को
ज्यों ही कमर झुकाई,
घोड़े जी ने मामा जी को
कस कर लात जमाई।
</poem>