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अब तक जो हम जीते आए / पृथ्वी पाल रैणा
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14:58, 5 अक्टूबर 2015
काम का मनचाहा फल पाओ
सब नें बचपन से सीखा है
फजऱ्
फ़र्ज़
और हक़ अलग भला कैसे समझें अब
तोड़-जोड़ में उलझे
उन सब इन्सानों का क्या होगा
द्विजेन्द्र ‘द्विज’
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