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18:20, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजा चौरसिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>मन में गुस्सा कभी न आए
कितनी अच्छी बात है,
फूलों जैसा मन मुस्काए
कितनी अच्छी बात है।
गुस्से की मर जाए नानी
या हो जाए पानी-पानी,
बात पेट में ही पच जाए
कितनी अच्छी बात है।
बनता काम बिगड़ जाता है
क्रोधी सबसे लड़ जाता है,
मुखड़ा सदा हँसी झलकाए
कितनी अच्छी बात है।
हेलमेल से हरदम रहना
बात पते की है ये कहना,
सबको खुश करना आ जाए
कितनी अच्छी बात है।
-साभार: बाल भारती, मई, 2000
</poem>