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|रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']]
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अब चटानों को तोड़ना होगा
वरना किस तरह रास्ता होगा

रौशनी बंद है मकानों में
चाँद तनहा खड़ा हुआ होगा

वरना कमरे में यूँ नहीं आता
कोई झोंका भटक गया होगा

धीरे-धीरे वो बंद दरवाज़ा
घर की दीवार हो गया होगा

झुर्रियों वाला कोई हाथ वहां
सीढ़ियों को तलाशता होगा