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{{KKRachna
|रचनाकार=भालचंद्र सेठिया
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<poem>सब कहते हैं प्यारा बचपन, हम तो हैं बेहद हैरान,
पापा कहते बड़ा आलसी, मम्मी कहती हैं शैतान।
पानी चाय पहुँचना बाहर, मुझको ही दौड़ाते हैं,
बातें करते सब मिल, लेकिन मैं पूछूँ, खिसयाते हैं।
कोई कहता, उठो सवेरे, कोई पाठ कराता याद,
जो न कहा मानोगे देखो, हो जाओगे तुम बरबाद।
ये मत खाना, वो मत करना, सुन-सुनकर थक जाते हम,
बस्ता, ट्यूशन डाँट हर घड़ी, क्या इनका बोझा है कम।
सब बच्चों के गीत सुनाते, अपना बचपन करते याद,
बच्चों के मन में क्या होता, कौन सुने उनकी फरियाद।
थोड़ा पढ़े, खूब हम खेलें, कुछ शैतानी भी कर लें,
घूमें-फिरें हँसे बोलें हम, कुछ मनमानी भी कर लें।
टाफी-बिस्कुट और मिठाई, चाट बताशों का पानी,
अगर मना करते हो तुम सब तो मरती अपनी नानी।
क्या दादा जी ने ये सब खाए बिल्कुल कभी नहीं?
या पापा दिन-रात पढ़े हैं, शैतानी की कभी नहीं?
</poem>
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