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00:06, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगदीशचंद्र शर्मा
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<poem>हाथी दादा चले घूमने होकर जब तैयार,
बाहर उनके लिए जीप सी खड़ी हुई थी कार।
उसके भीतर ज्यों ही दादा होने लगे सवार,
टायर फटा बोझ से भाई कार हुई बेकार।
</poem>