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13:34, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सरोजिनी अग्रवाल
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>मुझको कहते झंडू सेठ,
छोटा कद है मोटा पेट!
नाक पहाड़ी मिर्ची सी
कान खटाई की फाँकें,
आँखें गोल-मटोल बड़ी
इधर-उधर ताकें-झाँकें।
टूटा दाँत बनाए गेट,
मुझको कहते झंडू सेठ!
दो दर्जन केले खाकर
सात किलो पूड़ी खाता,
फिर बस सौ रसगुल्ले खा
सुबह कलेवा हो जाता।
तुरत सफाचट करता प्लेट,
मुझको कहते झंडू सेठ!
भले तखत टूटा भद्दा
मोटा सा मेरा गद्दा,
खूब मजे से सोता हूँ
ओढ़ खेस सस्ता, भद्दा।
दो कंुतल है मेरा वेट,
मुझको कहते झंडू सेठ!
</poem>