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14:35, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रदीप भटनागर
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|संग्रह=
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<poem>एक पते की बात बताऊँ
ओ चूहों के राजा,
‘मेरी दादी के बक्से में रक्खा खूब बताशा’।
एक बना के छोटा-सा बिल
चुपके से घुस जाओ,
लेकर के फिर सभी बताशे
फिफ्टी-फिफ्टी खाओ।
मगर कहीं ऐसा ना करना
लेकर सभी बताशे,
तुम अपने बिल में घुस जाओ
हम बाहर से झाँकें!
-साभार: हीरोज क्लब पत्रिका, इलाहाबाद
</poem>