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15:49, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
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<poem>मकड़ी रानी, मकड़ी रानी
बतलाओ तो प्रश्न हमारा,
कैसे तुमने जाल बुना है
इतना सुंदर, इतना प्यारा!
जिससे जाल बुना वो धागा
भला कहाँ से लाती हो,
बुनने वाली जो मशीन है
वह भी कहाँ छिपाती हो?
एक प्रार्थना तुमसे मेरी
है छोटी-सी सुनो जरा,
मैं पतंग का धागा दे दूँ
मेरे कपड़े बुनो जरा!
</poem>