Changes

बादल के पंख / शैलेश पंडित

1,228 bytes added, 16:30, 6 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेश पंडित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलेश पंडित
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बादल के पंख बड़े प्यारे हैं, डैडी!
मेरे भी पंख अगर होते,
बादल के बच्चों से
करता तब दोस्ती,
उड़ते हम साँझ सवेरे
थामकर हथेलियाँ
समुद्रों तक देते
धरती के रोज कई फेरे।
और कभी कुट्टी कर
एक ही बिछौने पर
चुप्पी में उस दिन हम सोते।

लूडो के खेल
खेलते रहते अकसर
रातों को तारों के घर में,
सड़कों पर मार रहे होते-
तब सीटियाँ,
सारे दिन चाँद के शहर में।
नीली-मिट्टी के कुछ जोड़कर घरौंदे
नाँदों भर-भर दही बिलोते!

-साभार: पराग, जुलाई, 1978
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits