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16:32, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=श्याम सुशील
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>चिट्ठी आई, चिट्ठी आई,
पापा जी की चिट्ठी आई!
दिल्ली से चल करके आई,
बिना पंख उड़ करके आई,
ट्रेन से आई, प्लेन से आई,
बस से, बाइसिकल से आई,
जाने कहाँ-कहाँ से होकर-
आज हमारे घर तक आई!
चिट्ठी आई, चिट्ठी आई,
पापा जी की चिट्ठी आई!
यह लो मम्मी झटपट खोलो,
चिट्ठी पढ़कर मुझे सुनाओ,
क्या लिक्खा है पापा जी ने,
कब घर आएँगे, बतलाओ!
बहुत दिनों के बाद याद-
पापा को उनकी बिट्टी आई!
चिट्ठी आई, चिट्ठी आई,
पापा जी की चिट्ठी आई!
</poem>